मनोज कुमार शर्मा
रांची जिले में सातो विधानसभा सीटों में कांके विधानसभा लंबे समय से भाजपा की सीट रही है. इस सुरक्षित सीट पर वर्ष 2000 से लेकर वर्ष 2019 तक लगातार यहां से भाजपा के प्रत्याशी जीतते आ रहे हैं. यहां तक कि वर्ष 2019 में जब एनडीए को झारखंड में मुंह की खानी पड़ी थी उस लहर में भी कांके के समय में भाजपा के समरी लाल अपनी सीट निकाल ले गये थे. हालांकि इस बार समरीलाल का टिकट काट कर फिर से 2014 के अपने विजयी प्रत्याशी डॉ. जीतू चरण राम को भाजपा ने उतारा है जहां उनका मुकाबला कांग्रेस के सुरेश बैठा से है.
कांके विधानसभा का क्षेतफल लंबाइ में बहुत दूर तक है, खलाड़ी से भी इसकी सीमायें छूती हैं, तकरीबन पांच लाख मतदाताओं वाले इस विधनसभा क्षेत्र में पुरूष और महिला मतदाता लगभग बराबर हैं. इसके हिस्से में शहरी क्षेत्र कम और रमणिक ग्रामीण तथा कस्बाई इलाके ज्यादा हैं.
भाजपा से डॉ. जीतू चरण राम को टिकट मिलना भी कुछ उसी तरह से है जैसे रांची से पुराने योद्धा सीपी सिंह को टिकट मिलना. कांके से समरीलाल का टिकट कटना तय था क्यों कि उनका कार्यकाल एक नीरस कार्यकाल रहा, उनकी एकमात्र चर्चित उपलब्धि अपने परिवार में ही पत्नी और बेटी से लड़ाई रही, इसके अलावा उन्होंने ऐसा कोई रचनात्मक काम नहीं किया जिससे जनता उन्हें याद रखे. समरीलाल को 2019 में उम्मीद थी कि झारखंड में रघुवर सरकार फिर से जीतेगी और अपनी सरकार में उन्हें कोई मंत्रीपद मिलेगा ? पर ऐसा कुछ नहीं हुआ समरीलाल पहले झामुमो, राजद में रह चुके थे और मुख्यमंत्री हेमंत सारेन को वह विधानसभा में अक्सर खटकते थे. हेमंत सोरेन ने तो एक बार उंगली दिखा कर समरी लाल को नकली जाति प्रमाणपत्र वाला कहा था. समरी लाल पर गलत जाति प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने के साथ ही बाहरी होने का तमगा लगा हुआ था और मामला कोर्ट तक गया, पर समरीलाल को कोर्ट से राहत मिली, बावजूद इसके समरीलाल टिकट रेस से बाहर हो गये और उनकी जगह लेने को भाजपा में कई लोग हाथ पांव मार रहे थे जिसमें अर्जुनराम से लेकर कमलेश राम सरीखे मुटठी भर समर्थन वाले भी थे. कमलेश राम तो भाजपा का टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ने को खड़े भी हो गये थे, पर हिमंता बिस्वा शर्मा की बागियों से संवाद औश्र मरहम की रणनीति काम आयी और कमलेश राम ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली.
क्या कांग्रेस इस बार जीत का सूखा खत्म कर पायेगी ?
इस बार भाजपा ने कोई रिस्क न लेते हुये पुराने चेहरे डॉ. जीतू चरण राम पर ही दाव खेला है. चुंकि कांके को भाजपा की सीट माना जाता है ऐसे में सवाल है कि क्या इस बार भी भाजपा ही यहां से मैदान मारेगी ? कुछ का जवाब है कि फिलहाल यहां से सबसे मजबूत दावा भाजपा का ही है, भले जीत का अंतर कम होगा. वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि कांके में इस बार कांटे की टक्कर है.
पिछले कुछ चुनावों में वोट का प्रतिशत कोई बहुत अच्छा नहीं रहा है और यहां के वोटर मुखर होकर कुछ बताते भी नहीं हालांकि वर्ष 2000 से लगातार भाजपा को विजयश्री देते रहे हैं. कांग्रेस ने पिछले दो विधानसभा चुनावों में भाजपा से अपनी हार का अंतर कम किया है. 2014 में सुरेश बैठा जहां 50 हजार से ज्यादा वोटों से के अंतर से हारे थे वहीं 2019 के चुनाव में उनकी हार का अंतर 21 हजार रह गया था. इधर अंतिम समय में भाजपा ने बागियों को समझा कर कुछ डैमेज कंट्रोल किया है. इस बार एंटीइकंबेंसी हेंमत सरकार के प्रति है और ऐसे पांच साल तक उपलब्धिहीन रहे समरीलाल को भुला कर कांके की जनता फिर से डॉ. जीतू को जीता सकती है? या जीत का सूखा खत्म कर इस बार कांग्रेस के सुरेश कुमार बैठा विधायक की कुर्सी पर बैठेंगे? स्वयं भाजपा के समर्थक भी कह रहे हैं कि इसबार कांटे की टक्कर है.